Wednesday, 29 June 2016

दो प्रश्न।

'सबने' समतल माना था जिसे,
उसी पृथ्वी को
एक दिन उन्हीं 'सबने' वृताकार पाया। 

तो क्या इसी तरह  संभव है,
एक दिन........
हम 'सब' लोग,हम 'सबकी' सोच ,
'सबकी' हँसी,'सबकी' खरोंच
'सबके' उत्तर, 'सबके' प्रश्न
'सबकी' हार पर हताशा,'सबकी' जीत का जश्न
……और भी बहुत कुछ 'सबका',
भी निकले गोलाकार,
जैसे इस धरती का आकार ??? 
और,
घूम रहें हो हम सभी उसी की भांति,
अपने ही अक्ष पर,
और 'सबके' समान लक्ष्य पर???
                                           -गोल्डी तिवारी।

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