Friday, 24 June 2016

सुकून।


सुकून। 

सुकून.......……  
वो प्याली
जिसकी 'कॉफी' में बगैर चीनी भी मिठास हो। 
साधारण सा वो एक प्याला,
जो आपके लिए एकदम ख़ास हो।

सुकून....... …… 
जैसे किसी किताब का वो सबसे पसंदीदा पन्ना,
जिसको ना जाने कितने बार पढ़ा गया हो। 
किसी और के संग्राम का वो वृतांत,
जो बार-बार खुद से लड़ा गया हो।   


सुकून.......…… 
जैसे सीधी-सच्ची सी एक दोस्ती,
जो बिलकुल साधारण हो। 
एक मासूम सा जुड़ाव,
जो एकदम अकारण हो।

सुकून.......……
वो गुज़रा हुआ वक़्त 
जिसमें लौट पाने की गुंजाईश होती है। 
जहाँ आज भी आपको लोग जानते हों,
और आपके विचारों की फ़रमाइश होती है।  

सुकून.......……
वो लम्हें,
जिन्हें कभी भी समेटा जा सकता है। 
वो गुजरे ज़माने के छोटे-बड़े किस्से,
जिन्हें, जिनके साथ बिताया गया था,
उन्हीं से फिर बाँटा जा सकता है। 


सुकून.......……
जैसे जिंदगी की कोई ख़ुशनुमा याद,    
जो रह-रहकर याद आती है। 
जो कभी किसी भी जीत का जश्न नहीं थी,
पर यादों की दौड़ में हमेशा जीत जाती है।

सुकून.......……
वो मासूम सी मुस्कान,
जो इस भागती सी जिंदगी में भी,
यदा-कदा मिल जाती है। 
इस तर्कसंगत जिंदगी की बंजर जमीं पर भी,
जो बेवज़ह सी खिल जाती है। 


सुकून.......……
वो चैन भरी सांस,
जो एक सफल दिन की थकान कह जाती है। 
और वो उम्मीद,
जो उनींदी आँखों से उतरकर,
कल के सपनों में गुम हो जाती है। 

सुकून.......……
जहाँ हम बार-बार ठग लिए जाते हों।  
पर फिर भी
जानबूझकर....…,    
हर बार नादानी दिखाते हों।  

सुकून.......…… 
वो दृष्टिकोण
जिससे मुक्तिबोध हो। 
और अपने ही मन का वो अनजान हिस्सा,
जो अबतक नादान और अबोध हो। 


सुकून.......……
जैसे घर का वो एक कोना…,
जहाँ इंसान अक्सर जाता है। 
जाता है....…कुछ पल बिताता है,
और फिर लौट आता है।  
लौट आता है वापस वहाँ,
जहाँ जिंदगी हमेशा की तरह,
उसी ढ़र्रे में भागती है। 
जहाँ…...., 
वक़्त हमेशा कुछ कम सा पड़ जाता है,
और दिन के साथ रातें भी जागती है। 

सुकून.......……
वो जिंदगी है,
जिससे हम लड़ते है.…, रूठते है…., कोसते है,
और कभी कड़वा घूँट समझ पी भी जाते है। 
परन्तु फिर भी हर बार,
जाने क्यों??
हर बार उसी जिंदादिली से जी जाते है।।

-गोल्डी तिवारी।

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