मोक्ष और प्रेम ।
मोक्ष, यानि मुक्ति,
मोक्ष, यानि मुक्ति,
पद -छंद रहित उन्मुक्त जीवन की एक सूक्ति।
जहाँ मानव हो हर बंधन ,हर मोह से परे,
जिये अहम् -अपेक्षाओ से रहित..,और बिना
किसी से डरे ।
ये हर उद्देश्य का अंतिम ध्येय और कर्मो का
कारण कहलाता है,
मोक्ष तो केवल मोक्ष निभाकर ही पाया जाता है॥
और प्रेम.....,
द्वेष- दंभ- दुविधा हीन होकर जब प्रेम निभाया जाए......,
तो ऐसा प्रेम भटकाए नहीं अपितु मोक्ष-प्राप्ति की दिशा दिखाए ।
व्याधि-बाधा -बंधन व बंधने -बाँधने से परे ऐसा ये दिव्य संबंध........ ,
जैसे...
राधा पर चढ़ा अगाध कृष्ण-प्रेम का रंग...,
जैसे..
द्रौपदी की अस्मिता बचाने हेतु गोविन्द का अलौकिक -अप्रत्यक्ष ढंग ...,
जैसे..
अर्जुन ने पाया सारथि रुपी कृष्ण का संग ,
और ...,
मीरा के श्रद्धा-समर्पण भरे गीतों का सारंग ...,
ये ही परमेश्वर ........,
ये ही परमानन्द।
प्रेम है....
मानवीय -संवेदनाओ की की सौंधी- सुगंध...।
हर संबंध के गठबंधन की पृष्ठभूमि को आकार देने वाला निराकार है,
प्रेम ही मुक्ति मार्ग और कर्मो में रत होने पुरस्कार है ॥
-गोल्डी तिवारी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 मई 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत सुंदर अलौकिक संदेश देती कविता ।
ReplyDeleteवाह👌👌👌
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