Friday, 26 August 2016

कविता: मोक्ष और प्रेम ।


मोक्ष और प्रेम 
मोक्ष, यानि मुक्ति,
पद -छंद  रहित उन्मुक्त जीवन की एक सूक्ति 
जहाँ मानव हो हर बंधन ,हर मोह से परे,
जिये अहम् -अपेक्षाओ से रहित..,और बिना
किसी से डरे 
ये हर उद्देश्य का अंतिम ध्ये और कर्मो  का
कारण कहलाता है,
मोक्ष तो  केवल मोक्ष निभाकर ही पाया जाता है

और प्रेम.....,

द्वेष- दंभ- दुविधा हीन होकर जब प्रेम निभाया जाए......,
तो ऐसा प्रेम भटकाए नहीं अपितु  मोक्ष-प्राप्ति की दिशा दिखाए 
व्याधि-बाधा -बंधन व बंधने -बाँधने  से परे ऐसा ये दिव्य संबंध........ ,
 जैसे...
 राधा पर चढ़ा अगाध  कृष्ण-प्रेम  का रंग...,
जैसे..
द्रौपदी की अस्मिता बचाने हेतु गोविन्द का अलौकिक -अप्रत्यक्ष ढंग ...,
जैसे..
अर्जुन ने पाया  सारथि रुपी कृष्ण  का संग ,
और ...,
मीरा के श्रद्धा-समर्पण भरे गीतों का सारंग ...,
ये ही परमेश्वर  ........,
ये ही परमानन्द
प्रेम है....
मानवीय -संवेदनाओ की की सौंधी- सुगंध...
हर संबंध के गठबंधन की पृष्ठभूमि को आकार देने वाला निराकार है, 
प्रेम ही मुक्ति मार्ग और कर्मो में रत होने पुरस्कार है 
  -गोल्डी तिवारी। 

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 मई 2021 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  2. बहुत सुंदर अलौकिक संदेश देती कविता ।

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