Thursday, 18 August 2016

कविता: जिंदगी तो झूम के बरसनी चाहिए।


   जिंदगी तो झूम के बरसनी चाहिए।

जिंदादिल हो हर पल, और जिंदादिली को तरसनी चाहिए,
जिंदगी तो झूम के बरसनी चाहिये!

जहाँ सच्ची बात बेबाक़ी से कही जाए, 
अपनों की नाराजगी अपनेपन से सही जाये।
संवेदनाओं में बुद्धि का हिसाब न हो ,
आधुनिकता में कृत्रिमता का रिसाव न हो। 

मंजिलें और रास्ते एक हों जहाँ,ऐसा एक सफ़र चाहिए। 
दो पल सुस्ताया जाए सुकून से सबको ऐसा घर चाहिए।

जो लगे दिल को अच्छा उसे करने में देर न हो,
मुस्कान ना बाँट पाये ऐसा भी किसी से बैर न हो। 
उलझे रिश्तों की सुलझन तुरंत हो,
लोगों में नहीं बल्कि विचारों में भिड़ंत हो। 

सबके पास यादों की एक खुशनुमा डायरी चाहिए,
कुछ पुरानी कहानियाँ और अनुभवों की शायरी चाहिए।

हमेशा बाँटा जा सके,ऐसा सबका हर्ष हो,
मुस्कान ना धूमिल कर पाये ऐसा हर संघर्ष हो। 
आँखों को फुर्सत न मिले नित सुस्वप्न सजाने से,
खुशियाँ चली आये अक्सर बिन निमंत्रण और बहाने से। 

खुशनुमा नजरिये की बेपरवाह रौशनी चाहिए, 
जिंदगी तो झूम के बरसनी चाहिये!

                                                                        गोल्डी तिवारी।                                                                     

                                                                          

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